बरसाना धाम

        किशोरी श्री राधा जू की कृपा कटाक्ष के बिना मधुर रस का आस्वादन नहीं हो सकता। श्री कृष्ण भी इनके प्रेम में मतवाले तथा इनकी चरण रज के लिये लालायित रहते हैं। वैसे तो श्री राधा तथा श्री कृष्ण एक ही रस समुद्र के दो महान रत्न हैं, आनन्द आस्वादन हेतु ये दो देह धारण कर लीलायें कर रहे हैं। जिस प्रकार श्री राधा जी के बिना कृष्ण जी की बाल लीलाओं का वर्णन अधूरा है उसी प्रकार बरसाना के बिना ब्रज का वर्णन नहीं किया जा सकता। बरसाना का प्राचीन नाम वृषभानुपुर है।

        ब्रज में निवास करने के लिये स्वयं ब्रह्मा जी भी आतुर रहते थे एवं श्री कृष्ण लीलाओं का आनन्द लेना चाहते थे। अतः उन्होंने सतयुग के अंत में विष्णु जी से प्रार्थना की कि आप जब ब्रज मण्डल में अपनी स्वरूपा श्री राधा जी एवं अन्य गोपियों के साथ दिव्य रास-लीलायें करें तो मुझे भी उन लीलाओं का साक्षी बनायें एवं अपनी वर्षा ऋतु की लीलाओं को मेरे शरीर पर संपन्न कर मुझे कृतार्थ करें।

        श्री ब्रह्मा जी की इस प्रार्थना को सुनकर भगवान विष्णु जी ने कहा - "हे ब्रह्मा! आप ब्रज में जाकर वृषभानुपुर में पर्वत रूप धारण कीजिये। पर्वत होने से वह स्थान वर्षा ऋतु में जलादि से सुरक्षित रहेगा, उस पर्वतरूप तुम्हारे शरीर पर मैं ब्रज गोपिकाओं के साथ अनेक लीलायें करुंगा और तुम उन्हें प्रत्यक्ष देख सकोगे। अतएव बरसाना में ब्रह्मा जी पर्वत रूप में विराजमान हैं। पद्मपुराण के अनुसार यहाँ विष्णु और ब्रह्मा नाम के दो पर्वत आमने सामने विद्यमान हैं। दाहिनी ओर ब्रह्म पर्वत और बायीं विष्णु पर्वत विद्यमान है।

        श्री नन्दबाबा एवं श्री वृषभानु जी का आपस में घनिष्ट प्रेम था। कंस के द्वारा भेजे गये असुरों के उपद्रवों के कारण जब श्री नन्दराय जी अपने परिवार, समस्त गोपों एवं गौधन के साथ गोकुल-महावन छोड़कर नन्दगाँव में निवास करने लगे, तो श्री वृषभानु जी भी अपने परिवार सहित उनके पीछे-पीछे रावल को त्याग कर चले आये और नन्दगाँव के पास बरसाना में आकर निवास करने लगे। यहाँ के पर्वतों पर श्री राधा-कृष्ण जी ने अनेक लीलाएँ की हैं। अपनी मधुर तोतली बोली से श्रीवृषभानु जी एवं कीरति जी को सुख प्रदान करती हुईं श्री राधा जी बरसाने की प्रत्येक स्थली को अपने चरण-स्पर्श से धन्य करती हैं। बरसाना गाँव लट्ठमार होली के लिये प्रसिद्ध है जिसे देखने के लिये हजारों भक्त एकत्र होते हैं।