ब्रज
धाम
व्रज समुद्र मथुरा कमल, वृन्दावन मकरंद।
व्रजबनिता सब पुष्प हैं, मधुकर गोकुलचंद॥
निखिल विश्व की आत्मा श्री
कृष्ण चराचर प्रकृति के एक मात्र अधीश्वर हैं, समस्त क्रियाओं के कर्ता, भोक्ता और
साक्षी भी हैं। वही सर्वव्यापक हैं, अन्तर्यामी हैं।
सच्चिदानन्द श्री कृष्ण जी का निज
धाम, उनकी बाल लीलाओं का साक्षी एवं उनकी
प्रियतमा श्री राधारानी का हृदय है ब्रज धाम। भारत वर्ष में अनेक तीर्थ स्थल
जैसे अयोध्या, द्वारिका, चित्रकूट, चार धाम आदि अवस्थित हैं। इन्हीं सब धामों में
ब्रज मण्डल अपना अनूठा महत्व रखता है। भक्ति रस में ब्रज रस की माधुरी अनुपमेय है।
भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज में प्रकट होकर रस की जो मधुरतम धारा प्रवाहित की उसकी
समस्त विश्व में कोई तुलना नहीं है। बड़े-बड़े ज्ञानी, योगी, ऋषि मुनि, देवगण सहस्त्र
वर्ष प्रभु के दर्शन पाने को तप करते हैं फ़िर भी वो प्रभु का दर्शन प्राप्त नहीं कर
पाते हैं वहीं इस ब्रज की पावन भूमि में परम सच्चिदानन्द श्री कृष्ण सहज ही सुलभ हो
जाते हैं।
समस्त ब्रज मण्डल को रसिक संतजनों ने बैकुण्ठ से भी सर्वोपरि माना है। इससे ऊपर और कोई भी धाम नहीं है जहाँ प्रभु
ने अवतार लेकर अपनी दिव्य लीलायें की हों। इस ब्रज भूमि में नित्य लीला शेखर श्रीकृष्णजी की बांसुरी
के ही स्वर सुनाई
देते हैं अन्य कोलाहल नहीं। यहाँ तो
नेत्र और श्रवणेन्द्रियाँ प्रभु की
दिव्य लीलाओं का दर्शन और श्रवण करते हैं। यहाँ
के रमणीय वातावरण में पक्षियों का चहकना,
वायु से लताओं का हिलना, मोर बंदरों का
वृक्षों पर कूदना, यमुना के प्रवाहित होने का कलरव, समस्त ब्रज गोपिकाओं का यमुना से
अपनी- अपनी मटकी में जल भर कर लाना और उनकी पैंजनियों की रुनझुन, गोपिकाओं का आपस
में हास-परिहास, ग्वालवालों का अपने श्याम सुन्दर के साथ नित्य नयी खेल-लीलाओं को
करना, सभी बाल सखाओं से घिरे श्री कृष्ण
का बड़ी चपलता से गोपियों का मार्ग रोकना और
उनसे दधि का दान
माँगना। यमुना किनारे कदम्ब वृक्ष के ऊपर बैठकर बंशी बजाना और बंशी
की ध्वनि सुनकर सभी गोपिकाओं का यमुना तट पर दौड़कर आना और लीला करना यही सब नन्द नन्दन
की नित्य लीलाएं इस ब्रज में
हुई हैं। यहाँ की सभी कुँज-निकुँज बहुत ही भाग्यशाली
हैं क्योंकि कहीं प्यारे श्याम सुन्दर का किसी लता में पीताम्बर उलझा तो कहीं किसी
निकुँज में श्यामाजू का आँचल उलझा। प्रभु
श्री श्याम सुन्दर की सभी निकुँज लीलायें सभी भक्तों, रसिकजनों सन्तों को आनन्द
प्रदान करती हैं।
ब्रज का हर वृक्ष देव हैं, हर
लता देवांगना है, यहाँ की बोली में माधुर्य है, बातों में लालित्य है, पुराणों का
सा उपदेश है, यहाँ की गति ही नृत्य है, रति को भी यह स्थान त्याग करने में क्षति
है, कण-कण में राधा-कृष्ण की छवि है, दिशाओं में भगवद नाम की झलक, प्रतिपल कानों
में राधे-राधे की झलक, देवलोक-गोलोक भी इसके समक्ष नतमस्तक हैं। सम्पूर्ण ब्रज-मण्डल का
प्रत्येक रज-कण, वृक्ष,
पर्वत, पावन कुण्ड-सरोवर और श्री यमुनाजी श्रीप्रिया-प्रियतम की नित्य निकुंज लीलाओं
के साक्षी हैं। श्री कृष्ण जी ने अपने ब्रह्मत्व का त्याग कर सभी ग्वाल बालों और
ब्रज गोपियों के साथ अनेक लीलाएँ की हैं। यहाँ उन्होने अपना बचपन बिताया। जिसमें
उन्होने ग्वाल बालों के साथ क्रीड़ा, गौ चारण, माखन चोरी, कालिया दमन आदि अनेक लीलाएँ
की हैं। भगवान कृष्ण की इन लीलाओं पर ही ब्रज के नगर, गाँव, कुण्ड, घाट आदि स्थलों
का नामकरण हुआ है।
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