गोवर्धन में दर्शनीय स्थल

श्याम ढाक : ब्रज गोपिकाऐं दही-छाछ की मटकियाँ लेकर जा रहीं थी। श्री कृष्ण और अन्य सखाओं ने उन्हें देखा तो उनसे छाछ मांगा। लेकिन किसी भी ग्वालवाल पर दोना या अन्य कोई पात्र नहीं था, जिसमें वे छाछ-दही लेते। श्री कृष्ण जी ने कदम्ब वृक्षों से प्रार्थना की - "आप हमको दौना दे दो।" यहाँ के वृक्ष  श्री कृष्ण जी की सेवा के लिये हमेश तत्पर रहते हैं। तब कदम्ब वृक्षों ने अपने पत्तों को दौने का आकार प्रदान किया। जिनमें उन्होंने छाछ पीया। आज भी यहाँ स्थित कदम्ब वृक्षों पर दौने के आकार के पत्ते आते हैं। "श्याम ढाक के दौना, जा में खावै श्याम सलोना"

कुसुम सरोवर : यहाँ पर एक विशाल पुष्प वन था। इस पुष्प वन में किशोरी जी अपनी सखियों के साथ पुष्प चुनने आती थीं, और श्याम सुन्दर अपने सखाओं के साथ गोचारण करते हुए यहाँ आते थे। श्री प्रिया-प्रियतम का यहाँ नित्य मिलन होता था। एक दिन किशोरी जी सखियों के साथ कुसुम वन में फ़ूल चयन कर रही थीं, श्री श्याम सुन्दर ने माली के रूप में दूर से खड़े होकर आवाज लगायी-"कौन तुम फ़ुलवा बीनन हारी" । साथ की सखियाँ आवाज सुनकर चौंक गयीं और इधर उधर भागने लगीं। तभी श्री किशोरी जी का नीलाम्बर एक झाड़ी में उलझ गया और सारे पुष्प उनके हाथ से नीचे पृथ्वी पर गिर गये। इतने में ही श्यामसुन्दर माली का वेष त्याग कर सामने उपस्थित हो गये। प्यारे श्यामसुन्दर ने नीलाम्बर को झाड़ी से छुड़ाया और पृथ्वी पर गिरे हुए पुष्प बीन लिये। इन पुष्पों को श्री कृष्ण जी ने कुसुम सरोवर में धोकर श्री राधा जी की चोटी में गूँथ दिये।

नारद कुण्ड : कुसुम सरोवर के सामने ही यहाँ नारद कुण्ड है। यहाँ नारद जी का मन्दिर है।

उद्धव कुण्ड : यह कुसुम सरोवर के पास परिक्रमा मार्ग पर स्थित है। उद्धव जी ने ब्रजवास की कामना हेतु यहाँ लत-पता बनने के लिये इच्छा प्रगट की। ताकि वह लता-पता बनकर ब्रज में सदा निवास करें।

पूँछरी का लौठा : यह गोवर्धन पर्वत की पूँछ कहा जाता है। यहाँ एक लौठा पहलवान का मन्दिर है जिसे श्री नाथ जी का सखा कहते हैं। जब श्री नाथ जी ब्रज छोड़कर राजस्थान जाने लगे तो उन्होंने लौठा से भी साथ चलने के लिए कहा। लौठा जी ने कहा - गोपाल मैंने प्रण लिया है कि मैं ब्रज छोड़ कर कहीं नहीं जाउंगा और जब तक आप वापस नहीं आओगे मैं अन्न-जल ग्रहण नहीं करुँगा। और जब आप लौट आओगे मेरा लौठा नाम सार्थक हो जायेगा। तो श्री नाथ जी ने कहा कि मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि बिना अन्न-जल के ही तुम स्वस्थ और जीवित रहोगे। "धनि धनि पूँछरी के लौठा, अन्न खाये न पानी पीवै ऐसे ही पड़ौ सिलौठा"

गोविन्द कुण्ड : देवराज इन्द्र ने अपनी गलती को स्वीकार करते हुए यहीं पर श्री कृष्ण जी की पूजा अर्चना की थी एवं कामधेनु के दूध से श्यामसुन्दर का अभिषेक किया था।

श्रीकृष्णकुण्ड : श्री कॄष्ण बलराम सखाओं सहित गोवर्धन की तलह्टी में गोचारण कर रहे थे। उसी समय कंस का भेजा हुआ अरिष्टासुर बैल का रूप धारण कर बछड़ों के समूह में आ मिला। श्री कृष्ण यह दृश्य देख रहे थे और उन्होंने श्री बलराम से परामर्श कर उसका वध कर दिया। यह बात किसी से छिपी न रही कि कृष्ण ने एक बछड़े का वध किया है। श्रीकृष्ण गोचारण करते हुए श्रीराधा एवं अन्य सखियों के पास पहुँचे तो सभी सखियों ने कहा कि आप हमसे दूर रहें क्योंकि तुम गौ-घाती हो, तुम्हारे स्पर्श से हमें भी इसका दोष लगेगा। श्री कृष्ण ने राधा जी और अन्य गोपियों से कहा कि तुम सब बहुत ही मन्दबुद्धि हो मैंने उस असुररूपी बछड़े का वध किया है जोकि ब्रज का अनिष्ट करने आया था। इस पर सखियों ने कहा कि इन्द्र को भी वृत्तासुर(जो ब्राह्मण था) का वध करने पर ब्रह्म हत्या का दोष लगा था। यह सुनकर श्री कृष्ण नि:उत्तर होकर भावुक स्वर में सखियों से बोले अब मुझे इस दोष के निवारण के लिये क्या करना चाहिये। तो सखियों ने कहा आप समस्त तीर्थों में जाकर स्नान करें तो इस पाप से मुक्ति मिलेगी। श्री कृष्ण ने सखियों से कहा-मैं यहीं समस्त तीर्थों को प्रकट करता हूँ और जैसे ही कृष्ण जी ने अपना चरण उठाकर पृथ्वी पर जोर से मारा तो तत्काल पाताल से भोगवती का जल निकलने लगा। श्री कृष्ण जी ने सभी तीर्थों को बुलाकर कहा कि इस भोगवती के जल में आप सभी समाविष्ट हो जाओ। श्री कृष्ण ने स्नान कर गोपियों से कहा तुम्हें भी असुर का पक्ष लेने के कारण पाप लगा है अत: तुम भी इसमें स्नान कर पापमुक्त हो जाओ।

राधाकुण्ड : जब कृष्ण जी ने सभी गोपियों एवं राधा जी को कृष्ण्कुण्ड में स्नान कर पाप मुक्त होने के लिये कहा तो राधा जी ने कहा - हम आपके गौहत्या पापलिप्त कुण्ड में क्यों स्नान करें क्या हम अपने लिये दूसरा शुद्ध कुण्ड नहीं बना सकती। इतना कहकर राधा जी ने सभी सखियों के साथ मिलकर अपने कंगनों से खोदकर एक सुन्दर कुण्ड बनाया एवं मानसी गंगा से जल लाकर इसमें भरा। इस कुण्ड में सभी स्नान करके असुर का पक्ष लेने के अपराध से मुक्त हुए। श्री राधाकुण्ड के मध्य ही कंकन कुण्ड स्थित है। जब कुण्ड में जल कम होता है तो इसके दर्शन होते हैं। कष्ण जी ने सभी तीर्थों को आदेश दिया कि आप सभी तीर्थ राधा जी के इस कुण्ड में प्रविष्ट होने के लिये उनकी स्तुति करो। श्री राधा जी ने सभी तीर्थगणों से पूँछा आप ऐसा क्यों करना चाहते हैं, तो सभी तीर्थ बोले कि हे करुणामयी हम आपके सरोवर में प्रविष्ट होकर अपने तीर्थ नाम को साकार करना चाहते हैं। श्रीराधा जी ने कृष्ण की ओर देखकर समस्त तीर्थों को अपने कुण्ड में प्रविष्ट होने की आज्ञा प्रदान की। श्री कृष्ण ने राधा कुण्ड में नित्य स्नान एवं जलबिहार का संकल्प लिया। श्री राधा जी ने कृष्ण कुण्ड में नित्य स्नान करने वालों को एवं उसके समीप वास करने वालों को समस्त पापों से मुक्त होकर अपने परमधाम प्राप्त करने का वचन दिया। इस कुण्ड का प्रादुर्भाव कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी की अर्धरात्रि को हुआ था। आज भी हजारों नर-नारि यहाँ अष्टमी के दिन स्नान कर अपनी सभी मनोकामना को पूरा करते हैं।

माल्यहारी कुण्ड : दीपावली के उत्सव पर श्री राधिका जी ने जब श्री कृष्ण को श्रंगार के मोती नहीं दिये तो भगवान श्री कृष्ण ने यहाँ मोतियों की खेती की थी।

जतीपुरा: इस स्थान पर गिरिराज शिला के नीचे श्री नाथ जी प्रकट हुए थे। यह स्थल श्री नाथ जी की विभिन्न लीलाओं को संजोये हुए है। बाद में औरंगजेब द्वार हिन्दू मंदिरों पर आक्रमण करने के कारण श्री नाथ जी को नाथद्वारा ले जाया गया।

दानघाटी : गोवर्धन की प्रेम घाटी, गोविन्द घाटी, श्याम घाटी एवं दान घाटी इन चार घाटियों में दान घाटी बहुत प्रसिद्ध है। यहाँ श्री गिरिराज मुखारबिन्द के सुन्दर दर्शन होते हैं एवं नव-निर्मित मंदिर में अनेक भगवत् विग्रहों के दर्शन हैं। श्री कृष्ण अपने सखाओं के साथ ब्रजगोपियों को इस घाटी पर रोक कर दूध-दधि का दान लिया करते थे। प्राय: यात्री दानघाटी से ही गोवर्धन परिक्रमा आरंभ करते हैं।

लक्ष्मी-नारायण मन्दिर: दान घाटी के सामने श्री लक्ष्मी-नारायण जी का विशाल मन्दिर है। इसमें ब्रज के प्रसिद्ध वयोवृद्ध परम भागवत पण्डित श्री गया प्रसाद जी जो एक सिद्ध संत थे उनको गिरिराज जी का साक्षात्कार यहीं पर हुआ था। उनके दर्शन से ही समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

आन्यौर :  यह वही स्थान है जहाँ नन्दराय और यशोदा जी ने सभी ब्रजवासियों के साथ श्री गिरिराज जी को अनेक प्रकार के पकवान आदि निवेदित किये थे। श्री कृष्णजी गिरिराज स्वरूप में प्रकट होकर समस्त पकवानों का भोग लगा रहे थे। भोग लगाते हुए कह रहे थे आन और आन और(और लाओ और लाओ)। अतः इस स्थान का नाम आन्यौर पड़ गया।

चन्द्र सरोवर (पारसौली): यहाँ भगवान श्री कृष्ण ने सर्वप्रथम छ: मास रात्रि की रास लीला की थी। गोवर्धन क्षेत्र में केवल इसी स्थान पर रासलीला का वर्णन मिलता है। यहाँ सूरदास जी की जन्मस्थली है।