वृन्दावन धाम की महिमा

धन-धन वृन्दावन रजधानी।

जहाँ विराजत मोहन राजा श्री राधा महारानी।

सदा सनातन एक रस जोरी महिमा निगम ना जानी।

श्री हरि प्रिया हितु निज दासी रहत सदा अगवानी॥

        वृन्दावन ब्रज का हृदय है जहाँ प्रिया-प्रियतम ने अपनी दिव्य लीलायें की हैं। इस दिव्य भूमि की महिमा बड़े-बड़े तपस्वी भी नहीं समझ पाते। ब्रह्मा जी का ज्ञान भी यहाँ के प्रेम के आगे फ़ीका पड़ जाता है। वृन्दावन रसिकों की राजधानी है यहाँ के राजा श्यामसुन्दर और महारानी श्री राधिका जी हैं। इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि वृन्दावन का कण-कण रसमय है। वृन्दावन श्यामसुन्दर की प्रियतमा श्री राधिका जी का निज धाम है। सभी धामों से ऊपर है ब्रज धाम और सभी तीर्थों से श्रेष्ठ है श्री वृन्दावन। इसकी महिमा का बखान करता एक प्रसंग---

        भगवान नारायण ने प्रयाग को तीर्थों का राजा बना दिया। अतः सभी तीर्थ प्रयागराज को कर देने आते थे। एक बार नारद जी ने प्रयागराज से पूँछा-"क्या वृन्दावन भी आपको कर देने आता है?" तीर्थराज ने नकारात्मक उत्तर दिया। तो नारद जी बोले-"फ़िर आप तीर्थराज कैसे हुए।" इस बात से दुखी होकर तीर्थराज  भगवान के पास पहुँचे। भगवान ने प्रयागराज के आने का कारण पूँछा। तीर्थराज बोले-"प्रभु! आपने मुझे सभी तीर्थों का राजा बनाया है। सभी तीर्थ मुझे कर देने आते हैं, लेकिन श्री वृन्दावन कभी कर देने नहीं आये। अतः मेरा तीर्थराज होना अनुचित है।"

        भगवान ने प्रयागराज से कहा-"तीर्थराज! मैंने तुम्हें सभी तीर्थों का राजा बनाया है। अपने निज गृह का नहीं। वृन्दावन मेरा घर है। यह मेरी प्रिया श्री किशोरी जी की विहार स्थली है। वहाँ की अधिपति तो वे ही हैं। मैं भी सदा वहीं निवास करता हूँ। वह तो आप से भी ऊपर है।

 

एक बार अयोध्या जाओ, दो बार द्वारिका, तीन बार जाके त्रिवेणी में नहाओगे।

चार बार चित्रकूट, नौ बार नासिक, बार-बार जाके बद्रिनाथ घूम आओगे॥

कोटि बार काशी, केदारनाथ रामेश्वर, गया-जगन्नाथ, चाहे जहाँ जाओगे।

होंगे प्रत्यक्ष जहाँ दर्शन श्याम श्यामा के, वृन्दावन सा कहीं आनन्द नहीं पाओगे॥